दिल में बेचैनी सी क्यों हैं


न जाने बरसों बाद अचानक दिल में बेचैनी सी क्यों हैं

न जानें मेरे जहन में बस एक ही शक्स छाया क्यों हैं।


इक बार नहीं जब भी वो रूठे हर बार उसे मना लूंगा,

गर बात करनी ही नहीं तो उसने मुझे बुलाया क्यों हैं।


वो ज्यादा वक्त तो हमारे साथ गुजारना पसंद करती हैं,

फिर उसने अपने पुराने आशिक का नाम लिया क्यों हैं।


जब मैं उसके साथ खड़ा हूं हर पल तो उसे डर क्यों हैं

गर वो हमे नहीं चाहती तो हाथों में हाथ थमाया क्यों हैं।


हमारी लापरवाही जवानी के साथ इस कदर बढ़ती गई,

दिल ऐसी छोटिसी चीज़ को अनाहूत तूने खोया क्यों हैं।


अगर हम दोनो ही एकदूसरे को उस कदर नहीं देखते,

तो अपनी प्रेमकथा रचने का खयाल हमें आया क्यों हैं।


दुनिया में क्या दर्द, रंजीशे, उलझने, मुसीबतें कम थी,

फिर युवाओं के सिर पर आशिकी का ही साया क्यों हैं।





- अनाहूत 
२० फ़रवरी २०२३
(२३:४९)

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