अन्त भी तय हैं ।


...अन्त भी तय हैं


हो आरंभ किसी चीज़ का तो अन्त भी तय हैं,

जो इस बात से सदा है निश्चल उसी की जय हैं।


दुखों के समुंदर में जो गोताखोर गोते लगाता हैं,

चाहे मोती मिले ना मिले, उसके जीवन में लय हैं।


एक एक कर के PhD, दोस्त, प्रेमी सब हो गए विदा,

अब तो केवल किसी के करीब आनेजाने का भय हैं।


कलयुग के तौर तरीके अब हमसे ना संभले जायेंगे,

आजकल तो मानों अच्छाई का पद पद पर पराजय हैं।


हम नहीं दोष देंगे उसे, ना ही परेशान करेंगे कभी,

मुख्तसर हमारा वादा निभाना, सौ प्रतिशत तय हैं।


दुनिया के हर अणुरेणु में अब दिखती हैं तेरी छबि,

मेरी कश्मकश है के तू अमृत है, जहर हैं या मय हैं?


कहने को तो अब भी कहता हूं कि सब बढ़िया हैं,

लेकिन वैसे तो अब पहले जैसी ना एक भी शय हैं।


चलो आज एक दिन अनाहूत बन के देख लो शायद,

समझ पाओगे के बांसुरी बना ये सीना - ए - नय हैं।


अनाहूत

२ मार्च २०२४

सुबह ८:३३


शब्दार्थ

१. सीना - ए - नय = heart of reed

२. मय = Wine/ Alcoholic intoxicants

३. लय = melody, tone or flow

४. शय = वस्तु, पदार्थ, द्रव्य, चीज़, things

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