खुशियों की राह में

खुशियों की राह में 


सारे फूलों को तेरे कदमों पर निसार चुका मैं 

तेरी इबादत के खातिर गुलशन बिखेर चुका मैं।


फिर आ गई तुम मेरी खुशियों की राह में

फिर उदासी को अपनी सूरत पे सवार चुका मैं।


तेरे प्यार में इतनी हद तक धसता गया हूं की,

बाहर निकलने के लिए भी तेरे ही नाम को पुकार चूका मैं।


मैंने तो माना था की एक तू ही है इस जहान में,

इसी गलाफैमी मे तुझ पर सौ बार वार चुका मैं।


आशिकी में न जाने कहा से ये फितूर आ गया

हर एक महफ़िल-ए-क़ाफिले को सुधार चुका मैं।


पहले नहीं आती थी मुझे कोई भी फनकारी लेकिन,

तेरी बेवफाई में मौसीकी को भी निखार चुका मैं।


तेरी मोहब्बत की आखरी बूंद भी जब सूख गई 

अपनी आंखों में फिर एक समंदर उतार चुका मैं।


- अनाहूत 

१ फरवरी २०२३, ००:४५

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