अधूरी डायरी

अधूरी डायरी 


ऐ अजनबी ये बता दे, बेवफा सी तू वफा दे
क्या किया था ये मैंने, इसका तू अंजाम बता दे।

बातों को तेरे लगते हुए, हम सरकते चलते रहे
तेरी उन सुनसान राहों, पे भी अब हम चल दिये।

रास्ते वो ख़त्म ना हो, वास्ते मेरे दिल ये कर
दिमाग का इक छल था जिसने, दिल को दी मातोशिकस्त ।

बावरापन मेरा कहता, मुझसे तू अब दूर रह
दूरियों और फासलोकी, राह भी बनी खोखली।

मैं भी तन्हा था मगर, राह मुझ को थी मिली
पर मन को मेरे जख्म देकर, चाल तूने क्या चली?

कहने को तो खबर ना, आलम के अब मेरे दिल के ही
दिल ही आवारा था, जो सिर्फ, तुझ को लगता बावरा...

जिन्दगीभर की दुआ, और ले ले मेरी जान भी
औ क्या ही अब ले भी पाऊँ मैं जख्म ऐसे दोबारा...

कहने को तो दर्द है ये, पर बड़ी मिठास है
वायदे से कुछ कह ना पाऊँ, तू भी कैसा यार है!

वैसे तो मेरी भी डायरी, अब पूरी है भरने लगी
तेरे आने से मगर अब, ये जिंदगी सवरने लगी...

मिलने फिर तू आ ही जाना, ऐ प्यारे अजनबी
क्यों की अब भी तेरा पन्ना, और अधूरी डायरी...

-अनाहूत



[Thanks to my friend Shalu Yadav for suggesting this title 😊]

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