... तो बेजान हूँ मैं
... तो बेजान हूँ मैं
आप अपना ढिंढोरा पीटो और अपनी ही वाहवाई करो
तुम्हारे बीच मे मै कैसे आऊ एक बदनाम तूफान हूँ मैं
तुम हो 'अमीर' का आशियाना, करो अपने पैसों का गुमान
एक निवाला भी बांटनेवाला एक 'गरीब' किसान हूँ मैं
किसी राजा के बड़े महल जैसा ना बन पाऊ तो क्या
पर जो भूखों को आशियाना लगे ऐसा टूटा मकान हूँ मैं
अभी से तुम मेरे नाम की चर्चा लगाए बैठे हो, जलते हो
पर अब तक तो खुद की ही क्षमताओं से अन्जान हूँ मैं
कभी शान्ति मे छिपा सुकून हूँ, तो कभी खुशी की वजह, या तेरे इश्क का जुनून,
पर कभी दर्द बाँटने वाला सच्चा दोस्त अगर ना बन पाऊँ तो बेजान हूँ मैं
-अनाहूत
[ The first two lines of the poem are not mine. I have heard similar verse somewhere in Marathi of which I don't have memory now. If you find it then please comment. No copyright impingement intended.]
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