फिर क्या होगा???


फिर क्या होगा?

एक घनी रात में घूम रहे थे साथ में
आज नहीं तो कल, हो जाएंगे गुमराह, अपनी ही किसी बात में
फिर क्या होगा क्या पता ..धृ..

शायद ये पल और लम्हा बस दिल में अपने साथ होगा
वो घना आसमान, टिमटिमाते तारे देखते हुए लेटना
किसी की यादों में खोना, या सितारों में किसी को खोजना
शायद शहर की भाग दौड़ भरी जिंदगी में कहीं खो जायेगा
या दिल के किसी कोने में दफनाया जाएगा
आज वक़्त अपना है शायद ही वो कल अपना ना हो
फिर क्या होगा क्या पता ..१..

अगर नहीं पता तो क्यूँ हैं हम खुद से ही खफा
क्यूँ करे हम किसी की याद में खुद को बेपर्दा
ये पर्दा ढका है तो हम हम है जब ये हट जाएगा
तो शायद हम भी पानी कम हैं
तो क्या बस सोचते रहे
चलो अगर मान भी लिया की हमारी हस्थी एक चींटी जितनी है इस जहाँ में
तो फिर क्या होगा क्या पता ..२..

छोड़ो इन बातों को बीती हुई रातों को
तुम खुद ही पाक नजरिया दो जिंदगी को
पहचानो ख़ुद के अस्तित्व को
अनसुना कर दो गैरों की बातों को
कस लो अपनी कमर और बंधु निकल पडो लक्ष्य की ओर
फिर क्या-क्या होगा क्या पता ..३..

- अनाहूत 

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